चतुर्षु—चारों पर; एतेषु—मन्दर इत्यादि इन चारों पर; चूत-जम्बू-कदम्ब—आम, जामुन तथा कदम्ब जैसे वृक्ष; न्यग्रोधा:— (तथा) वट वृक्ष; चत्वार:—चार प्रकार के; पादप-प्रवरा:—वृक्षों में श्रेष्ठ; पर्वत-केतव:—पर्वतों पर ध्वजाएँ; इव—सदृश; अधि—ऊपर; सहस्र-योजन-उन्नाहा:—एक हजार योजन ऊँचा; तावत्—इतना भी; विटप-विततय:—शाखाओं की लम्बाई; शत-योजन—एक सौ योजन; परिणाहा:—चौड़ी ।.
अनुवाद
इन चारों पर्वतों की चोटियों पर ध्वजाओं के रूप में एक एक आम्र, जामुन, कदम्ब तथा वट वृक्ष हैं। इन वृक्षों का घेरा १०० योजन (८०० मील) तथा ऊँचाई १,१०० योजन (८,८०० मील) है। इनकी शाखाएँ १,१०० योजन की त्रिज्या में फैली हैं।
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