येष्वमर परिवृढा: सह सुरललनाललामयूथपतय उपदेवगणैरुपगीयमानमहिमान: किल विहरन्ति ॥ १५ ॥
शब्दार्थ
येषु—जिनमें; अमर-परिवृढा:—सर्वश्रेष्ठ देवगण; सह—सहित; सुर-ललना—समस्त देवताओं तथा उपदेवताओं की पत्नियों के; ललाम—आभूषण सदृश उन स्त्रियों के; यूथ-पतय:—पतिगण; उपदेव-गणै:—उपदेवों (गन्धर्वों) के द्वारा; उपगीयमान— जिनकी स्तुति हो रही है; महिमान:—जिनका यश; किल—निश्चय ही; विहरन्ति—विहार करते हैं, क्रीड़ा करते हैं ।.
अनुवाद
इन उद्यानों में श्रेष्ठतम देवगण अपनी-अपनी सुन्दर पत्नियों के सहित जो स्वर्गिक सौन्दर्य के आभूषणों जैसी हैं, एकत्र होकर आनन्द लेते हैं और गन्धर्व-जन उनके यश-गान करते हैं।
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