मेरो:—सुमेरु पर्वत की; मूर्धनि—चोटी पर; भगवत:—सर्वशक्तिमान प्राणी; आत्म-योने:—भगवान् ब्रह्मा की; मध्यत:—मध्य में; उपकॢप्ताम्—स्थित; पुरीम्—पुरी, विशाल नगरी; अयुत-योजन—दस हजार योजन; साहस्रीम्—एक हजार; सम- चतुरस्राम्—चारों ओर समान लम्बाई का; शात-कौम्भीम्—पूर्णत: सोने की बनी हुई; वदन्ति—मुनियों का कथन है ।.
अनुवाद
मेरु की चोटी के मध्य भाग में ब्रह्माजी की पुरी स्थित है। इसके चारों कोने समान रूप से एक करोड़ योजन (आठ करोड़ मील) तक विस्तृत हैं। यह पूरे का पूरा स्वर्ण से निर्मित है, इसीलिए विद्वतजन तथा ऋषि-मुनि इसे शातकौम्भी नाम से पुकारते हैं।
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