तत: अधस्तात्—वितल लोक के नीचे; सुतले—सुतल लोक में; उदार-श्रवा:—अत्यन्त प्रसिद्ध; पुण्य-श्लोक:—अत्यन्त पवित्र एवं चिन्मय भावना में अग्रसर; विरोचन-आत्मज:—विरोचन का पुत्र; बलि:—बलि महाराज; भगवता—श्रीभगवान् के द्वारा; महा-इन्द्रस्य—स्वर्ग के राजा इन्द्र का; प्रियम्—कुशलता; चिकीर्षमाणेन—करने की कामना रखने वाला; आदिते:—अदिति से; लब्ध-काय:—अपना शरीर प्राप्त करके; भूत्वा—प्रकट होकर; वटु—ब्रह्मचारी; वामन-रूपेण—वामन के रूप में; पराक्षिप्त—ऐंठ लिया; लोक-त्रय:—तीनों लोक; भगवत्-अनुकम्पया—श्रीभगवान् की कृपा से; एव—ही; पुन:—फिर; प्रवेशित:—प्रवेश करने के लिए बाध्य किया; इन्द्र-आदिषु—स्वर्ग के राजा जैसे देवताओं के मध्य में; अविद्यमानया— अनुपस्थित रहकर; सुसमृद्धया—ऐसे ऐश्वर्य से अत्यन्त धनी बनकर; श्रिया—सौभाग्य से; अभिजुष्ट:—आशीष प्राप्त करके; स्व-धर्मेण—भक्ति करके; आराधयन्—आराधना करके; तम्—उसे; एव—निश्चय ही; भगवन्तम्—श्रीभगवान् को; आराधनीयम्—अत्यन्त आराध्य; अपगत-साध्वस:—भयरहित; आस्ते—रहता है; अधुना अपि—आज भी ।.
अनुवाद
वितल के नीचे सुतल नामक एक अन्य लोक है जहाँ महाराज विरोचन के पुत्र बलि महाराज रहते हैं, जो अत्यन्त पवित्र राजा के रूप में विख्यात हैं और वहाँ आज भी निवास करते हैं। स्वर्ग के राजा इन्द्र के कल्याण हेतु भगवान् विष्णु अदिति के पुत्र वामन ब्रह्मचारी के रूप मेंप्रकट हुए और केवल तीन पग पृथ्वी माँग कर महाराज बलि को छल कर तीनों लोक प्राप्त कर लिए। सर्वस्व दान ले लेने पर बलि से प्रसन्न होकर भगवान् ने उन्हें उनका राज्य लौटा दिया और इन्द्र से भी ऐश्वर्यवान् बना दिया। आज भी सुतललोक में श्रीभगवान् की आराधना करते हुए बलि महाराज भक्ति करते हैं।
तात्पर्य
पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान् को उत्तमश्लोक कहा गया है, जिसका अर्थ है, “जिसकी आराधना श्रेष्ठतम चुने हुए संस्कृत श्लोकों से की जाती है” तथा बलि महाराज सरीखे उनके भक्तों की भी पुण्यश्लोक अर्थात् करुणा बढ़ाने वाले श्लोकों के रूप में आराधना की जाती है। बलि महाराज ने अपना सर्वस्व, अपनी सम्पत्ति, अपना राज्य यहाँ तक कि अपना शरीर भी भगवान् को अर्पित कर दिया (सर्वात्म-निवेदने बलि: )। भगवान् ब्राह्मण भिक्षुक के रूप में बलि महाराज के सम्मुख प्रकट हुए और बलि महाराज ने जो कुछ भी उनके पास था, वह सब कुछ दे डाला। फिर भी, वे दरिद्र नहीं हुए, वे श्रीभगवान् को अपना सर्वस्व अर्पित करके सफल भक्त बन गये और भगवान् के आशीष से उन्हें सब कुछ वापस मिल गया। इसी प्रकार जो लोग कृष्णभावनामृत आन्दोलन के कार्यों को बढ़ावा देने के लिए और इसके उद्देश्यों को पूरा करने के लिए दान देते हैं, वे कभी घाटे में नहीं रहते, उन्हें भगवान् श्रीकृष्ण के आशीर्वाद से सब कुछ वापस मिल जाएगा। दूसरी ओर जो अन्तर्राष्ट्रीय कृष्णभावनामृत संघ के लिए धन संग्रह करते हैं उन्हें चाहिए कि उसमें से भगवान् की दिव्य सेवा के अतिरिक्त अन्य किसी कार्य में एक पाई भी खर्च न करें।
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