यस्य—जिसका; इदम्—यह; क्षिति-मण्डलम्—ब्रह्माण्ड; भगवत:—श्रीभगवान् का; अनन्त-मूर्ते:—अनन्त देव के रूप में; सहस्र-शिरस:—एक हजार फणों वाले; एकस्मिन्—एक; एव—केवल; शीर्षणि—फण में; ध्रियमाणम्—रखा हुआ; सिद्धार्थ: इव—(तथा) श्वेत सरसों के दाने के तुल्य; लक्ष्यते—दिखाई पड़ता है ।.
अनुवाद
शुकदेव गोस्वामी ने आगे कहा—भगवान् अनन्त के सहस्र फणों में से एक फण के ऊपर रखा हुआ यह विशाल ब्रह्माण्ड श्वेत सरसों के दाने के समान प्रतीत होता है। भगवान् अनन्त के फण की तुलना में यह नगण्य है।
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