परमसत्य जड़ तथा जंगम समस्त जीवों के बाहर तथा भीतर स्थित हैं। सूक्ष्म होने के कारण वे भौतिक इन्द्रियों के द्वारा जानने या देखने से परे हैं। यद्यपि वे अत्यन्त दूर रहते हैं, किन्तु हम सबों के निकट भी हैं।
तात्पर्य
वैदिक साहित्य से हम जानते हैं कि परम-पुरुष नारायण प्रत्येक जीव के बाहर तथा भीतर निवास करने वाले हैं। वे भौतिक तथा आध्यात्मिक दोनों ही जगतों में विद्यमान रहते हैं। यद्यपि वे बहुत दूर हैं, फिर भी वे हमारे निकट रहते हैं। ये वैदिक साहित्य के वचन हैं। आसीनो दूरं व्रजति शयानो याति सर्वत: (कठोपनिषद् १.२.२१)। चूँकि वे निरन्तर दिव्य आनन्द भोगते रहते हैं, अतएव हम यह नहीं समझ पाते कि वे सारे ऐश्वर्य का भोग किस तरह करते हैं। हम इन भौतिक इन्द्रियों से न तो उन्हें देख पाते हैं, न समझ पाते हैं। अतएव वैदिक भाषा में कहा गया है कि उन्हें समझने में हमारा भौतिक मन तथा इन्द्रियाँ असमर्थ हैं। किन्तु जिसने, भक्ति में कृष्णभावनामृत का अभ्यास करते हुए, अपने मन तथा इन्द्रियों को शुद्ध कर लिया है, वह उन्हें निरन्तर देख सकता है। ब्रह्मसंहिता में इसकी पुष्टि हुई है कि परमेश्वर के लिए जिस भक्त में प्रेम उपज चुका है, वह निरन्तर उनका दर्शन कर सकता है। और भगवद्गीता में (११.५४) इसकी पुष्टि हुई है कि उन्हें केवल भक्ति द्वारा देखा तथा समझा जा सकता है। भक्त्या त्वनन्यया शक्य:।
शेयर करें
All glories to Srila Prabhupada. All glories to वैष्णव भक्त-वृंद
Disclaimer: copyrights reserved to BBT India and BBT Intl.