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श्रीकृष्ण - लीला पुरुषोत्तम भगवान  »  अध्याय 55: श्रीकृष्ण और रुक्मिणी से पुत्र प्रद्युम्न का जन्म  » 
 
 
 
 
 
ऐसा कहा जाता है कि भगवान् वासुदेव के अंश कामदेव को भूतकाल में शिवजी ने क्रोध से भस्म कर दिया था । उसी कामदेव ने श्रीकृष्ण की सन्तान के रूप में रुक्मिणी के गर्भ से जन्म लिया । स्वर्ग लोक का यह देवता कामदेव काम को जाग्रत करने में विशेष रूप से समर्थ है । भगवान् श्रीकृष्ण के विभिन्न अंशों के अनेक स्तर हैं । किन्तु श्री वासुदेव, श्री संकर्षण, श्री प्रद्युम्न तथा श्री अनिरुद्ध नामक श्रीकृष्ण के चतुर्व्यूह विस्तार प्रत्यक्षरूप से विष्णु की श्रेणी में हैं । कामदेव ने बाद में रुक्मिणी के गर्भ से जन्म लिया और उसका भी नाम प्रद्युम्न रखा गया, किन्तु वे विष्णु की श्रेणी वाले प्रद्युम्न नहीं हो सकते हैं । वे जीव-तत्त्व की श्रेणी के थे, किन्तु देवताओं की श्रेणी वाली विशिष्ट शक्ति से युक्त होने के कारण, वे प्रद्युम्न के अद्भुत पराक्रम का अंश थे । गोस्वामियों का यही मत है । अतएव जब शिवजी के क्रोध से काम भस्म हो गया, तो वह श्रीवासुदेव के शरीर में लीन हो गया । उसका शरीर उसे पुन: प्राप्त हो, इस हेतु भगवान् श्रीकृष्ण ने स्वयं उसे सन्तान के रूप में स्वीकार किया । श्रीकृष्ण ने प्रत्यक्ष रूप से उसे अपने शरीर से रुक्मिणी जी के गर्भ में स्थापित किया और वह श्रीकृष्ण के पुत्र के रूप में उत्पन्न हुआ । वह प्रद्युम्न के नाम से विख्यात हुआ । श्रीकृष्ण के पुत्र होने के कारण उसके गुण भी श्रीकृष्ण के समान थे । शम्बर नामक एक असुर का इन्हीं प्रद्युम्न के हाथों वध होने वाला था । शम्बरासुर को अपनी इस नियति का ज्ञान था और जैसे ही उसे ज्ञात हुआ कि प्रद्युम्न का जन्म हो चुका है, वैसे ही उसने एक स्त्री का रूप धारण करके शिशु का हरण किया । उसने शिशु के जन्म के दस दिन के अन्दर ही प्रसूति गृह से उसका हरण कर लिया । असुर ने उसे ले जाकर सीधे समुद्र में फेंक दिया । किन्तु जैसा कहा जाता है, "श्रीकृष्ण जिसकी रक्षा करते हैं उसे कोई नहीं मार सकता है और श्रीकृष्ण द्वारा जिसका वध होने वाला है उसकी कोई रक्षा नहीं कर सकता है । (राखे कृष्ण मारे के, मारे कृष्ण राखे के)" जब प्रद्युम्न को समुद्र में फेंका गया तब तत्क्षण एक विशाल मछली उन्हें निगल गई । कुछ काल पश्चात् यह मछली एक मछुआरे के जाल में पकड़ी गई और बाद में वह मछली शम्बरासुर को बेच दी गई । असुर की पाकशाला (रसोई) में मायावती नाम की एक दासी थी । वह स्त्री भूतकाल में काम की पत्नी रति थी । जब मछली शम्बरासुर को दी गई तब उसके रसोइए ने उसे लिया । रसोइए का कार्य इस मछली को सुस्वादु भोजन के रूप में पकाना था । असुर एवं राक्षस मांस, मछली आदि इसी प्रकार के मांसाहारी भोजन करने के अभ्यस्त होते हैं । उसी भाँति दूसरे असुर जैसे रावण, कंस तथा हिरण्यकशिपु आदि ब्राह्मण और क्षत्रिय पिता के पुत्र थे, किन्तु वे बिना विचार किए मांसाहार करते थे । भारत में यह प्रचलन अभी-भी है और मछली तथा मांसाहार करने वाले को सामान्यतया असुर तथा राक्षस कहा जाता है । जब रसोइया मछली को काट रहा था तब उसे मछली के पेट में एक सुन्दर शिशु मिला । उसने तत्काल उस शिशु को भोजन बनाने में सहायता करने वाली मायावती के संक्षरण में दे दिया । इस स्त्री को यह देखकर आश्चर्य हुआ कि इतना सुन्दर शिशु एक मछली के पेट में किस प्रकार रहा और यह परिस्थिति उसे उलझन में डाल रही थी । तत्पश्चात् देवर्षि नारद जी ने आकर प्रद्युम्न के जन्म, शम्बरासुर द्वारा उसके हरण तथा समुद्र में फेंके जाने की समस्त कथा उसे बताई । इस रीति से पूर्वजन्म में कामदेव की पत्नी रही रति को, जिसका नाम अब मायावती था, समस्त कथा स्पष्ट हो गई । मायावती को ज्ञात था कि पहले वह कामदेव की पत्नी थी । शिवजी के क्रोध से अपने पति के भस्म हो जाने के पश्चात् वह सदैव ही यह आशा कर रही थी कि कामदेव को भौतिक देह प्राप्त होगी । मायावती का कार्य रसोई में दाल चावल पकाना था, किन्तु जब उसे यह शिशु प्राप्त हुआ और उसे ज्ञात हुआ कि वह उसका पति कामदेव है, तो स्वाभाविक रूप से उसने उस शिशु को अपने संरक्षण में ले लिया और अत्यन्त स्नेहपूर्वक उसका पालन करने लगी । चमत्कारिक रूप से वह शिशु अत्यन्त तीव्र गति से विकसित होने लगा और अत्यन्त अल्पकाल में वह एक अत्यन्त सुन्दर युवक बन गया । उसके नयन कमलपुष्प की पंखुड़ियों के समान थे और उसकी भुजाएँ घुटनों तक लम्बी थीं । उसे देखकर सभी युवतियाँ उसके शरीर-सौन्दर्य पर मोहित हो जाती थीं । मायावती समझ सकती थी कि प्रद्युम्न के रूप में उत्पन्न उसका पूर्वपति कामदेव इतना सुन्दर युवक हो गया था और धीरे-धीरे वह भी मोहित तथा कामातुर हो गई । अपनी वासना की अभिव्यक्ति करती हुई वह प्रद्युम्न के समक्ष स्त्रियोचित आकर्षण सहित मुस्करा रही थी । अतएव प्रद्युम्न ने उससे प्रश्न किया, "ऐसा किस प्रकार सम्भव है कि पहले तुम एक माँ की भाँति स्नेहशील थी और अब तुम एक कामातुर रुत्री के लक्षण व्यक्त कर रही हो ? इस परिवर्तन का कारण क्या है ?" प्रद्युम्न के इस कथन को सुनकर रति ने उत्तर दिया, "प्रियवर ! आप भगवान् कृष्ण के पुत्र हैं । आप दस दिन के भी नहीं थे, जब शम्बरासुर ने आपका हरण करके आपको समुद्र में फेंक दिया था और एक मछली आपको निगल गई थी । इस प्रकार आप मेरे संरक्षण में आ गए, किन्तु वास्तव में कामदेव के रूप में आपके पूर्वजीवन में मैं आपकी पत्नी थी । अतएव मेरा आपके प्रति दाम्पत्य प्रेम के लक्षणों को प्रकट करना असंगत नहीं है । शम्बर आपका वध करना चाहता था और उसको विभिन्न सिद्धियाँ प्राप्त हैं । अतएव वह आपके वध का प्रयास करे, इसके पूर्व ही शीघ्रातिशीघ्र आप अपनी दिव्य शक्ति से उसका वध कर दीजिए । जब से शम्बर ने आपको चुराया है, आपकी माता रुक्मिणी देवी अत्यन्त शोचनीय अवस्था में हैं । उनकी दशा वैसी ही है जैसी अपनी सन्तान को खोकर किसी कोयल पक्षी की होती है । उनका आप पर अत्यन्त स्नेह है और जब से आपको उनसे विलग कर दिया गया है, वे उसी प्रकार जीवन व्यतीत कर रही हैं, जैसे बछड़े को खो कर गाय दुखी रहती है ।" मायावती को महामाया का ज्ञान था । अलौकिक शक्तियों को साधारणतया माया के नाम से जाना जाता है । इस प्रकार की समस्त मायाओं में सर्वोत्कृष्ट एक और माया होती है, जिसे महामाया कहते हैं । मायावती को महामाया नामक सिद्धि का शान था और शम्बरासुर की मायावी शक्तियों को परास्त करने के लिए उसने यह विशिष्ट शक्ति प्रद्युम्न को प्रदान की । इस प्रकार अपनी पत्नी से शक्ति प्राप्त करके प्रद्युम्न तत्काल शम्बरासुर के समक्ष गया और उसे युद्ध के लिए चुनौती दी । प्रद्युम्न उसे अत्यन्त कठोर शब्दों से सम्बोधित करने लगा, जिससे कि उसे क्रोध आ जाए और वह उत्तेजित होकर युद्ध के लिए तत्पर हो जाए । प्रद्युम्न के शब्द सुनकर शम्बरासुर अपमान से ऐसा अनुभव करने लगा जैसे किसी के पैर से आघात खाकर सर्प अनुभव करता है । उसकी दशा आहत सर्प जैसी हो गई । किसी भी मनुष्य अथवा पशु द्वारा चोट खाना सर्प को सहन नहीं होता है और वह तत्क्षण अपने विरोधी को काट लेता है । प्रद्युम्न के शब्द शम्बर को वैसे ही लगे जैसे किसी ने ठोकर मारी हो । वह तत्काल अपनी गदा उठा कर युद्ध करने के लिए प्रद्युम्न के समक्ष आया । अत्यन्त क्रोध में वह अपनी गदा से प्रद्युम्न पर उसी भाँति प्रहार करने लगा, जिस भाँति वज़ किसी पर्वत पर प्रहार करता है । असुर आर्तनाद भी कर रहा था और मेघ के समान गर्जन कर रहा था । प्रद्युम्न ने अपनी गदा से अपनी रक्षा की और अन्तत: उसने असुर पर अत्यन्त कठोर प्रहार किया । इस प्रकार शम्बरासुर तथा प्रद्युम्न के मध्य घोर युद्ध प्रारम्भ हो गया । किन्तु शम्बरासुर को मायावी शक्तियों की कला ज्ञात थी और वह आकाश में जाकर अन्तरिक्ष से युद्ध कर सकता था । मय नामक एक और असुर था जिससे शम्बरासुर ने अनेक मायावी शक्तियाँ सीखी थीं । इस प्रकार शम्बरासुर आकाश में चला गया और प्रद्युम्न के शरीर पर विभिन्न प्रकार के परमाणु अस्त्र फेंकने लगा । शम्बरासुर की मायावी शक्तियों से युद्ध करने के लिए प्रद्युम्न ने अन्य मायावी शक्ति महाविद्या का स्मरण किया । महाविद्या तंत्र विद्या से भिन्न है । तंत्र विद्या का प्रयोग तमोगुण के अन्तर्गत माना जाता है । महाविद्या की गूढ़ शक्ति सतोगुण पर आधारित है । यह जानकर कि उसका शत्रु प्रबल था शम्बरासुर ने गुह्यकों की विभिन्न प्रकार की आसुरी मायावी शक्तियों की सहायता ली । उसने गंधर्वो, पिशाचों, नागों तथा राक्षसों की शक्तियों की भी सहायता ली । यद्यपि उसने अपनी मायावी शक्तियों का प्रदर्शन किया और अमानुषिक शक्ति का आश्रय लिया, तथापि महाविद्या श्रेष्ठ शक्ति के द्वारा प्रद्युम्न उसकी शक्तियों और बल को निष्फल करने में सफल हुआ । जब शम्बरासुर पूर्णरूपेण पराजित हो गया तब प्रद्युम्न ने अपनी तीक्ष्ण धार वाली तलवार लेकर तत्काल उस असुर का सिर काट लिया, जो मूल्यवान रत्नों तथा मुकुट से सुशोभित था । जब प्रद्युम्न ने इस प्रकार उस असुर का वध किया, तो स्वर्गलोक से सभी देवता उस पर पुष्पवर्षा करने लगे । प्रद्युम्न की पत्नी मायावती अन्तरिक्ष में यात्रा कर सकती थी, अतएव वे दोनों वायुमार्ग से सीधे प्रद्युम्न के पिता की राजधानी द्वारका पहुँच गए । वे भगवान् श्रीकृष्ण के राजमहल के ऊपर से गए और जिस प्रकार बिजली के साथ मेघ नीचे आता है उसी प्रकार वे नीचे उतरने लगे । महल का भीतरी भाग अन्त:पुर कहलाता है । प्रद्युम्न तथा मायावती देख सकते थे कि वहाँ अनेक स्त्रियाँ थीं और वे उन्हीं के मध्य बैठ गए । उन स्त्रियों ने प्रद्युम्न को पीताम्बर तथा अनेक रत्नाभूषण धारण किए हुए देखा । जब उन स्त्रियों ने उनकी आजानु भुजाएँ कुंचित केश, सुन्दर नेत्र तथा मुस्कानयुक्त सुन्दर मुखारविन्द देखा, तो वे भगवान् श्रीकृष्ण से भिन्न, प्रद्युम्न के रूप में उसे न पहचान सकीं । उन सबको यही प्रतीत हुआ कि श्रीकृष्ण ही उनके मध्य आए हैं और उनकी अचानक उपस्थिति से वे स्वयं को कृतार्थ समझने लगीं । वे महल के किसी दूसरे कोने में छिप जाना चाहती थीं । किन्तु जब स्त्रियों ने देखा कि श्रीकृष्ण के सभी लक्षण प्रद्युम्न में नहीं थे, तब कुतूहलवश वे पुन: उन्हें और उनकी पत्नी मायावती को देखने के लिए वापस आ गई । प्रद्युम्न इतने सुन्दर थे कि वे सारी स्त्रियाँ इस विषय में अनुमान लगाने लगीं वे कौन थे । उन स्त्रियों में रुक्मिणी देवी भी थीं, जो स्वयं भी कमलाक्षी थीं और उतनी ही सुन्दरी थीं । स्वभावतः ही प्रद्युम्न को देख कर उन्हें अपने पुत्र का स्मरण हो आया और वात्सल्य के कारण उनके स्तनों से दूध बहने लगा । तदनन्तर वे विचार करने लगीं, "यह सुन्दर किशोर कौन है ? यह सर्वाधिक सुन्दर प्रतीत होता है । वह कौन सौभाग्यवती युवती है, जिसे इस किशोर को अपने गर्भ से जन्म देकर उसकी माँ बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है ? और वह युवती कौन है, जो इसके साथ है ? उनकी भेंट कैसे हुई ? मेरे पुत्र को प्रसूतिगृह से चुरा लिया गया था । उसका स्मरण करके मैं केवल यही अनुमान कर सकती हूँ कि यदि वह कहीं जीवित है, तो अब तक वह भी इस किशोर के जितना बड़ा हो गया होगा ।" केवल सहज ज्ञान से रुक्मिणी जी समझ सकती थीं कि प्रद्युम्न उनके ही खोए हुए पुत्र थे । उन्होंने यह भी देखा कि प्रद्युम्न प्रत्येक दृष्टि से श्रीकृष्ण के अनुरूप थे । वे अत्यन्त आश्चर्यचकित थीं कि श्रीकृष्ण के सभी लक्षण उन्हें कैसे प्राप्त हुए । अतएव वे और अधिक विश्वासपूर्वक विचार करने लगीं कि अवश्य ही यह किशोर उनका ही पुत्र है, क्योंकि उन्हें उसके प्रति अत्यधिक स्नेह की अनुभूति हो रही थी । शुभ शकुन के रूप में उनकी बायीं भुजा फड़क रही थी । उसी क्षण अपने माता-पिता, देवकी तथा वसुदेव जी के साथ श्रीकृष्ण भी वहाँ आ गए । भगवान् श्रीकृष्ण सब कुछ समझ सकते थे, तथापि उस परिस्थिति में वे मौन रहे । किन्तु भगवान् श्रीकृष्ण की इच्छा से देवर्षि नारद जी भी वहाँ आ गए । उन्होंने सारी घटनाएँ स्पष्ट कीं कि किस प्रकार प्रद्युम्न को प्रसूति गृह से हर लिया गया था, किस प्रकार वे बड़े हुए थे और अपनी पत्नी मायावती के साथ वहाँ आए हैं । उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि मायावती ही पूर्वजन्म में कामदेव की पत्नी रति थी । जब सबको प्रद्युम्न के रहस्यपूर्ण ढंग से तिरोहित होने तथा बड़े होने की जानकारी मिली, तो वे सब आश्चर्यचकित हो गए, क्योंकि जब वे उनको वापस पाने से लगभग निराश हो चुके थे, तब उनका मृत पुत्र उन्हें पुन: प्राप्त हो गया था । जब उन्हें यह समझ में आया कि वहाँ उपस्थित किशोर प्रद्युम्न ही है, तब उन्होंने अत्यन्त प्रसन्नतापूर्वक उसका स्वागत किया । देवकी, वसुदेव, भगवान् श्रीकृष्ण, भगवान् बलराम तथा रुक्मिणी जी और परिवार की सभी स्त्रियों तथा सदस्यों ने एक-एक कर के प्रद्युम्न तथा उसकी पत्नी मायावती का आलिंगन किया । जब प्रद्युम्न के आने का समाचार द्वारका नगर में चारों ओर फैला तब सभी चकित नागरिक अत्यन्त उत्सुकतापूर्वक खोए हुए प्रद्युम्न के दर्शनार्थ वहाँ आने लगे । वे कहने लगे, "मृत पुत्र वापस लौट आया है । इससे बढ़कर आनन्द का समाचार और क्या हो सकता है ?"

श्रील शुकदेव गोस्वामी ने स्पष्ट किया है कि प्रारम्भ में महल की सभी नारियों ने प्रद्युम्न को श्रीकृष्ण समझा और वे लज्जा गई । वे सभी वास्तव में प्रद्युम्न की माता तथा विमाताएँ थीं, किन्तु प्रद्युम्न को श्रीकृष्ण समझ कर वे दाम्पत्य प्रेम की कामना से पीड़ित हो उठीं और लज्जा गई । इसका स्पष्टीकरण यह है कि प्रद्युम्न की माँ तथा अन्य स्त्रियों ने उन्हें श्रीकृष्ण समझा । इस कथन से स्पष्ट है कि प्रद्युम्न के शारीरिक लक्षण श्रीकृष्ण के इतने अधिक अनुरूप थे कि स्वयं उनकी माँ ने भी उन्हें श्रीकृष्ण ही समझा ।

इस प्रकार लीला पुरुषोत्तम भगवान् श्रीकृष्ण के अन्तर्गत “श्रीकृष्ण और रुक्मिणी जी के पुत्र प्रद्युम्न का जन्म” नामक पचपनवें अध्याय का भक्तिवेदान्त तात्पर्य पूर्ण हुआ ।
 
 
 
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