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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 1: सृष्टि  »  अध्याय 1: मुनियों की जिज्ञासा  »  श्लोक 23
 
 
श्लोक  1.1.23 
ब्रूहि योगेश्वरे कृष्णे ब्रह्मण्ये धर्मवर्मणि ।
स्वां काष्ठामधुनोपेते धर्म: कं शरणं गत: ॥ २३ ॥
 
शब्दार्थ
ब्रूहि—कृपया कहें; योग-ईश्वरे—समस्त योग शक्तियों के स्वामी; कृष्णे—भगवान् कृष्ण; ब्रह्मण्ये—परम सत्य; धर्म— धर्म; वर्मणि—रक्षक; स्वाम्—अपना; काष्ठाम्—धाम; अधुना—इस समय; उपेते—चले गये; धर्म:—धर्म; कम्— किसकी; शरणम्—शरण में; गत:—गया हुआ ।.
 
अनुवाद
 
 चूँकि परम सत्य, योगेश्वर, श्रीकृष्ण अपने निज धाम के लिए प्रयाण कर चुके हैं, अतएव कृपा करके हमें बताएँ कि अब धर्म ने किसका आश्रय लिया है?
 
तात्पर्य
 धर्म मूल रूप से साक्षात् भगवान् द्वारा स्थापित आचार-संहिता है। जब भी धर्म के सिद्धान्तों का दुरुपयोग होता है या उसकी उपेक्षा की जाती है, तो धर्म की स्थापना करने के लिए भगवान् स्वयं अवतरित होते हैं। इसका उल्लेख भगवद्गीता में किया गया है। यहाँ पर नैमिषारण्य के ऋषि-मुनि इन्हीं सिद्धान्तों के विषय में पूछ रहे हैं। इस प्रश्न का उत्तर आगे दिया गया है। श्रीमद्भागवत भगवान् की दिव्य वाणी का स्वरूप है। इस प्रकार यह दिव्य ज्ञान एवं धर्म का पूर्ण स्वरूप है।
 
इस प्रकार श्रीमद्भागवत के प्रथम स्कंध के अन्तर्गत, “मुनियों की जिज्ञासा” नामक प्रथम अध्याय के भक्तिवेदान्त तात्पर्य पूर्ण हुए।
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥