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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 14: ब्रह्मा द्वारा कृष्ण की स्तुति  »  श्लोक 49
 
 
श्लोक  10.14.49 
श्रीराजोवाच
ब्रह्मन् परोद्भ‍वे कृष्णे इयान् प्रेमा कथं भवेत् ।
योऽभूतपूर्वस्तोकेषु स्वोद्भ‍वेष्वपि कथ्यताम् ॥ ४९ ॥
 
शब्दार्थ
श्री-राजा उवाच—राजा ने कहा; ब्रह्मन्—हे ब्राह्मण, शुकदेव; पर-उद्भवे—दूसरे की सन्तान; कृष्णे—कृष्ण के लिए; इयान्— इतना अधिक; प्रेमा—प्रेम; कथम्—क्यों; भवेत्—हो सकता है; य:—जो; अभूत-पूर्व:—अभूतपूर्व; तोकेषु—बालकों के लिए; स्व-उद्भवेषु—अपने ही जन्मे; अपि—भी; कथ्यताम्—कृपया बतलाइये ।.
 
अनुवाद
 
 राजा परीक्षित ने कहा, “हे ब्राह्मण, ग्वालों की पत्नियों में एक पराये पुत्र कृष्ण के लिए ऐसा अभूतपूर्व शुद्ध प्रेम किस प्रकार उत्पन्न हुआ—ऐसा प्रेम जिसका अनुभव उन्हें अपने पुत्रों के प्रति भी नहीं उत्पन्न हुआ? कृपया इसे बतलाइये।”
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥