जब ग्वाल समुदाय के सदस्यों ने, जिन्होंने कृष्ण को अपना सर्वप्रिय मित्र मान रखा था, उन्हें नाग की कुण्डली में लिपटा हुआ और गतिहीन देखा तो वे अत्यधिक विचलित हो उठे। उन्होंने कृष्ण को अपना सर्वस्व—अपने आप को, अपने परिवार, अपनी सम्पत्ति, अपनी पत्नियाँ तथा सारे आनन्द—अर्पित कर रखा था। भगवान् को कालिय सर्प के चंगुल में देखकर उनकी बुद्धि शोक, पश्चात्ताप तथा भय से भ्रष्ट हो गई और वे पृथ्वी पर गिर पड़े।
तात्पर्य
श्रील सनातन गोस्वामी बतलाते हैं कि ग्वालबाल, कुछ गोप तथा आस-पास के किसान जो कृष्ण के भक्त थे वे भूमि पर इस प्रकार गिर पड़े मानों जड़ से कटे हुए वृक्ष हों।
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