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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 16: कृष्ण द्वारा कालिय नाग को प्रताडऩा  »  श्लोक 11
 
 
श्लोक  10.16.11 
गावो वृषा वत्सतर्य: क्रन्दमाना: सुदु:खिता: ।
कृष्णे न्यस्तेक्षणा भीता रुदन्त्य इव तस्थिरे ॥ ११ ॥
 
शब्दार्थ
गाव:—गौवें; वृषा:—बैल; वत्सतर्य:—बछिया; क्रन्दमाना:—जोर से चिल्लाते हुए; सु-दु:खिता:—अत्यधिक दुखित; कृष्णे—कृष्ण पर; न्यस्त—गड़ा दिया; ईक्षणा:—अपनी नजर; भीता:—भयभीत; रुदन्त्य:—रोते हुए; इव—मानो; तस्थिरे— बिना हिले-डुले खड़े रहे ।.
 
अनुवाद
 
 गौवें, बैल तथा बछडिय़ाँ सभी अत्यधिक दुखारी होकर करुणापूर्वक कृष्ण को पुकारने लगीं। वे पशु उन पर अपनी दृष्टि गड़ाये हुए भयवश बिना हिले-डुले खड़े रहे मानो चिल्लाना चाह रहे हों परन्तु आघात के कारण अश्रु न बहा सकते हों।
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥