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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 23: ब्राह्मण-पत्नियों को आशीर्वाद  »  श्लोक 52
 
 
श्लोक  10.23.52 
इति स्वाघमनुस्मृत्य कृष्णे ते कृतहेलना: ।
दिदृक्षवो व्रजमथ कंसाद् भीता न चाचलन् ॥ ५२ ॥
 
शब्दार्थ
इति—इस प्रकार; स्व-अघम्—अपने अपराध को; अनुस्मृत्य—फिर से स्मरण करके; कृष्णे—कृष्ण के विरुद्ध; ते—वे; कृत हेलना:—तिरस्कार प्रदर्शित करने पर; दिदृक्षव:—देखने की इच्छा से; व्रजम्—नन्द महाराज के गाँव; अथ—तब; कंसात्— कंस से; भीता:—डरे हुए; —नहीं; —तथा; अचलन्—गये ।.
 
अनुवाद
 
 इस प्रकार कृष्ण की उपेक्षा करने से उनके द्वारा जो अपराध हुआ था उसका स्मरण करते हुए उनका दर्शन करने के लिए वे अति उत्सुक हो उठे। किन्तु कंस से भयभीत होने के कारण उन्हें व्रज जाने का साहस नहीं हुआ।
 
तात्पर्य
 भगवान् कृष्ण के विरुद्ध अपने अपराध का अनुभव करते हुए और अन्ततोगत्वा उनके सर्वशक्तिमान पद की प्रशंसा करते हुए ब्राह्मणों ने व्रज जाकर भगवान् के चरणकमलों की शरण ग्रहण करनी चाही। किन्तु उन्हें भय था कि जब कंस के गुप्तचर उसे जाकर यह बतलायेंगे कि वे ब्राह्मण कृष्ण के पासे गये थे तो वह उन्हें अवश्य मार डालेगा। ब्राह्मणपत्नियाँ कृष्णभावनामृत में भावमग्न थीं अत: वे येन केन प्रकारेण कृष्ण के पास चली गई थीं जिस तरह गोपियाँ कृष्ण के साथ नृत्य करने के लिए अर्धरात्रि में जंगली पशुओं से भरे जंगल से होकर गई थीं। किन्तु ये ब्राह्मण कृष्णभावनामृत के उस उच्च पद को प्राप्त नहीं थे अतएव कंस के भय से पराजित होकर भगवान् का दर्शन करने नहीं जा सके।
 
इस प्रकार श्रीमद्भागवत के दसवें स्कंध के अन्तर्गत “ब्राह्मण-पत्नियों को आशीर्वाद” नामक तेईसवें अध्याय के श्री श्रीमद् ए.सी. भक्तिवेदान्त स्वामी प्रभुपाद के विनीत सेवकों द्वारा रचित तात्पर्य पूर्ण हुए।
 
 
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