हिंदी में पढ़े और सुनें
भागवत पुराण  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 27: इन्द्रदेव तथा माता सुरभि द्वारा स्तुति  »  श्लोक 27
 
 
श्लोक  10.27.27 
कृष्णेऽभिषिक्त एतानि सर्वाणि कुरुनन्दन ।
निर्वैराण्यभवंस्तात क्रूराण्यपि निसर्गत: ॥ २७ ॥
 
शब्दार्थ
कृष्णे—भगवान् कृष्ण; अभिषिक्ते—अभिषेक किये गये; एतानि—ये; सर्वाणि—समस्त; कुरु-नन्दन—हे कुरुवंशी; निर्वैराणि—शत्रुता से रहित; अभवन्—हो गये; तात—हे परीक्षित; क्रूराणि—क्रूर; अपि—यद्यपि; निसर्गत:—प्रकृति द्वारा ।.
 
अनुवाद
 
 हे कुरुनन्दन परीक्षित, भगवान् कृष्ण को अभिषेक कराने के बाद सभी जीवित प्राणी, यहाँ तक कि जो स्वभाव के क्रूर थे, सर्वथा शत्रुतारहित बन गये।
 
तात्पर्य
 जो लोग किसी प्रकार से सनकी हैं, वे केवल भगवान् की पूजा द्वारा उत्पन्न स्वर्गिक विश्व परिस्थिति के वर्णनों पर हँस सकते हैं। दुर्भाग्यवश आधुनिक मनुष्य ने अपनी सनक के कारण ही कृष्णभावनामृत के द्वारा पृथ्वी पर स्वर्ग बनाने को ठुकराकर पृथ्वी पर नरक की स्थिति उत्पन्न कर दी है। यहाँ पर वर्णित भगवान् के शुभ अभिषेक से उत्पन्न परिस्थिति एक मौलिक ऐतिहासिक घटना है। चूँकि इतिहास की पुनरावृत्ति होती है अतएव आशा है कि कृष्णभावनामृत आन्दोलन पुन: स्वरूपसिद्ध विश्व की प्रकाशमय वास्तविकता को ला देगा।
 
शेयर करें
       
 
  All glories to Srila Prabhupada. All glories to  वैष्णव भक्त-वृंद
  Disclaimer: copyrights reserved to BBT India and BBT Intl.
   
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥