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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 28: कृष्ण द्वारा वरुणलोक से नन्द महाराज की रक्षा  »  श्लोक 10
 
 
श्लोक  10.28.10 
नन्दस्त्वतीन्द्रियं द‍ृष्ट्वा लोकपालमहोदयम् ।
कृष्णे च सन्नतिं तेषां ज्ञातिभ्यो विस्मितोऽब्रवीत् ॥ १० ॥
 
शब्दार्थ
नन्द:—नन्द महाराज; तु—तथा; अतीन्द्रियम्—इसके पूर्व न देखा गया; दृष्ट्वा—देखकर; लोक-पाल—(समुद्र) लोक के अधिष्ठाता देवता, वरुण का; महा-उदयम्—महान् ऐश्वर्य; कृष्णे—कृष्ण के प्रति; —तथा; सन्नतिम्—नमस्कार करना; तेषाम्—उनके (वरुण तथा उसके अनुयायियों) द्वारा; ज्ञातिभ्य:—अपने मित्रों तथा सम्बन्धियों से; विस्मित:—चकित; अब्रवीत्—कहा ।.
 
अनुवाद
 
 नन्द महाराज समुद्र लोक के शासक वरुण के महान् ऐश्वर्य को पहली बार देखकर तथा यह देखकर कि वरुण तथा उसके सेवकों ने किस तरह कृष्ण का आदर किया था, आश्चर्यचकित थे। नन्द ने इसका वर्णन अपने साथी ग्वालों से किया।
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥