परीक्षित महाराज को इतना चकित नहीं होना चाहिए था कि भगवान् कृष्ण के तथाकथित प्रेमालाप समस्त ब्रह्माण्ड को मुक्त कराने के निमित्त हैं। आखिर, यही तो भगवान् का उद्देश्य है कि आनन्द तथा ज्ञानमय जीवन के लिए समस्त बद्धात्माओं को अपने धाम वापस बुलायें। गोपियों के प्रति कृष्ण के माधुर्य व्यापार उक्त योजना के साथ बहुत ही अच्छी तरह से मेल खाते हैं क्योंकि भौतिक चेतना में वास्तविक रूप में आसक्त हम सभी उनके विषय में सुनकर शुद्ध तथा मुक्त हो सकते हैं। श्रीमद्भागवत के प्रथम स्कंध (१.५.३३) में नारदमुनि कहते हैं—
आमयो यश्च भूतानां जायते येन सुव्रत।
तदेव ह्यामयं द्रव्यं न पुनाति चिकित्सितम् ॥
“हे पवित्र आत्मा! जिस वस्तु से कोई रोग उत्पन्न होता है, क्या उसीको औषधि के रूप में लगाने से वह रोग ठीक नहीं हो जाता?” अत: कृष्ण के प्रेम-व्यापार शुद्ध आध्यात्मिक कर्म होने के कारण उन लोगों के भौतिक कामवासना के रोग को दूर कर देंगे जो उनका श्रवण करते हैं।