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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 46: उद्धव की वृन्दावन यात्रा  »  श्लोक 29
 
 
श्लोक  10.46.29 
तयोरित्थं भगवति कृष्णे नन्दयशोदयो: ।
वीक्ष्यानुरागं परमं नन्दमाहोद्धवो मुदा ॥ २९ ॥
 
शब्दार्थ
तयो:—उन दोनों का; इत्थम्—इस प्रकार से; भगवति—भगवान् के लिए; कृष्णे—कृष्ण; नन्द-यशोदयो:—नन्द तथा यशोदा का; वीक्ष्य—स्पष्ट देखकर; अनुरागम्—प्रेममय आकर्षण; परमम्—परम; नन्दम्—नन्द से; आह—बोले; उद्धव:—उद्धव; मुदा—हर्षपूर्वक ।.
 
अनुवाद
 
 तब भगवान् कृष्ण के प्रति नन्द तथा यशोदा के परम अनुराग को स्पष्ट देखकर उद्धव ने हर्षपूर्वक नन्द से कहा।
 
तात्पर्य
 यदि उद्धव ने नन्द तथा यशोदा को कष्ट भोगते देखा होता तो वे हर्ष व्यक्त न करते। किन्तु वास्तव में आध्यात्मिक स्तर पर सारी भावनाएँ दिव्य आनन्द होती हैं। शुद्ध-भक्तों का तथाकथित रोष प्रेम-भाव का दूसरा रूप है। उद्धव ने इसे स्पष्ट देखा था इसीलिए वे इस प्रकार बोले।
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥