दान, कठिन व्रत, तपस्या, अग्नि यज्ञ, जप, वैदिक ग्रंथों का अध्ययन, विधि-विधानों का पालन तथा अन्य अनेक शुभ साधनों द्वारा भगवान् कृष्ण की भक्ति प्राप्त की जाती है।
तात्पर्य
श्रील विश्वनाथ चक्रवर्ती ने यहाँ पर वर्णित विधियों की व्याख्या की है। दान—भगवान् विष्णु तथा उनके भक्तों को दान दिया जाता है। व्रत—एकादशी जैसे व्रत रखना। तपस्—कृष्ण के निमित्त इन्द्रिय-तृप्ति का परित्याग। होम—विष्णु को समर्पित अग्नि यज्ञ। जप—भगवान् के नामों का मन में उच्चारण करना। स्वाध्याय—वैदिक ग्रंथों यथा गोपाल तापनी उपनिषद् का अध्ययन एवं वाचन।
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