दरअसल सर्वोच्च सुख तो समस्त इच्छाओं का परित्याग करने में है जैसा कि पिंगला नामक वेश्या तक ने भी कहा है। यह जानते हुए भी हम कृष्ण को पाने की अपनी आशाएँ नहीं छोड़ सकतीं।
तात्पर्य
पिंगला की कहानी श्रीमद्भागवत् के ग्यारहवें स्कंध के आठवें अध्याय में आई है।
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