यह कितना आश्चर्यजनक है कि जंगल में विचरण करने वाली एवं अनुपयुक्त आचरण के कारण दूषित सी प्रतीत होने वाली इन सीधी-सादी स्त्रियों ने परमात्मा कृष्ण के लिए शुद्ध प्रेम की पूर्णता प्राप्त कर ली है। तो भी यह सच है कि भगवान् एक अज्ञानी पूजक को भी अपना आशीर्वाद देते हैं जिस प्रकार कि अज्ञानी व्यक्ति द्वारा किसी उत्तम औषधि के अवयवों से अनजान होते हुए पी लेने पर भी वह अपना प्रभाव दिखलाती है।
तात्पर्य
प्रथम दो पंक्तियों में क्व शब्द दो अनमेल वस्तुओं में तीव्र विरोध दिखलाता है—प्रथम पंक्ति में गोपियों की ऊपर से तुच्छ तथा अशुद्ध दिखने वाली स्थिति का वर्णन है और दूसरी पंक्ति में जीवन की चरम सिद्धि की प्राप्ति का वर्णन है। इस सन्दर्भ में श्रील विश्वनाथ चक्रवर्ती तीन प्रकार की व्यभिचारिणी स्त्रियों का वर्णन करते हैं। पहला प्रकार उन स्त्रियों का है, जो अपने पति तथा प्रेमी दोनों के साथ संभोग करती हैं और दोनों में से किसी की भी विश्वासपात्र नहीं होतीं। इस आचरण की भर्त्सना समाज तथा शास्त्र दोनों करते हैं। दूसरा प्रकार उन व्यभिचारिणियों का है, जो अपने पति को त्याग कर केवल प्रेमी के साथ संभोग करती हैं। समाज तथा शास्त्र दोनों इस आचरण की भी निन्दा करते हैं यद्यपि ऐसी स्त्री में यह गुण तो होता ही है कि पतित होने पर भी वह एक व्यक्ति के प्रति समर्पित रहती है। तीसरी प्रकार की व्यभिचारिणी वह है, जो अपने पति को त्याग कर भगवान् को ही एकमात्र प्रेमी मानकर आनंद भोगती है। श्रील विश्वनाथ चक्रवर्ती बतलाते हैं कि यद्यपि सामान्य मूर्ख लोग इस तीसरी दशा की आलोचना करते हैं किन्तु जो अध्यात्मविज्ञान में समुन्नत हैं, वे इस आचरण की प्रशंसा करते हैं। इसीलिए समाज तथा शास्त्र भगवान् के प्रति एकान्तिक भक्ति की प्रशंसा करते हैं। गोपियों का आचरण ऐसा ही था। अत: व्यभिचारदुष्टा “विचलन के कारण दूषित” शब्द गोपियों के आचरण तथा सामान्य व्यभिचारिणियों में आभासी सादृश्य को दर्शाता है।
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