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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 5: नन्द महाराज तथा वसुदेव की भेंट  »  श्लोक 13
 
 
श्लोक  10.5.13 
अवाद्यन्त विचित्राणि वादित्राणि महोत्सवे ।
कृष्णे विश्वेश्वरेऽनन्ते नन्दस्य व्रजमागते ॥ १३ ॥
 
शब्दार्थ
अवाद्यन्त—वसुदेव के पुत्रोत्सव पर बजाया; विचित्राणि—विविध प्रकार के; वादित्राणि—वाद्ययंत्र; महा-उत्सवे—महान् उत्सव में; कृष्णे—जब भगवान् कृष्ण; विश्व-ईश्वरे—सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड के स्वामी; अनन्ते—असीम; नन्दस्य—महाराज नन्द के; व्रजम्—चरागाह में; आगते—आए हुए ।.
 
अनुवाद
 
 चूँकि अब सर्वव्यापी, सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड के स्वामी, अनन्त भगवान् कृष्ण महाराज नन्द की पुरी में पदार्पण कर चुके थे, अतएव इस महान् उत्सव के उपलक्ष्य में नाना प्रकार के वाद्ययंत्र बजाये गये।
 
तात्पर्य
 भगवद्गीता (४.७) में भगवान् कहते हैं—

यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।

अभ्युत्थानमर्धमस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ॥

“जब-जब धर्म की हानि होती है और अधर्म का प्राधान्य होता है तब-तब हे भरतवंशी! मैं स्वयं अवतरित होता हूँ।” ब्रह्मा के एक दिन में, जब भी कृष्ण अवतरित होते हैं, तो वे वृन्दावन में नन्द महाराज के घर में ही आते हैं। कृष्ण सारी सृष्टि के स्वामी हैं (सर्वलोकमहेश्वरम् )। अत: न केवल नंद महाराज के व्रज के पड़ोस में अपितु सारे ब्रह्माण्ड में तथा अन्य सभी ब्रह्माण्डों में भगवान् के शुभ आगमन पर वाद्ययंत्र बज उठे।

 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥