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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 54: कृष्ण-रुक्मिणी विवाह  »  श्लोक 54
 
 
श्लोक  10.54.54 
तदा महोत्सवो नृणां यदुपुर्यां गृहे गृहे ।
अभूदनन्यभावानां कृष्णे यदुपतौ नृप ॥ ५४ ॥
 
शब्दार्थ
तदा—तब; महा-उत्सव:—महान् उत्साह; नृणाम्—लोगों द्वारा; यदु-पुर्याम्—यदुओं की राजधानी द्वारका में; गृहे गृहे—घर घर में; अभूत्—उठा; अनन्य-भावानाम्—अनन्य प्रेम; कृष्णे—कृष्ण के लिए; यदु-पतौ—यदुओं के प्रमुख; नृप—हे राजा (परीक्षित) ।.
 
अनुवाद
 
 हे राजन्, उस समय यदुपुरी के सारे घरों में महान् उत्साह था क्योंकि उसके नागरिक यदुओं के एकमात्र प्रधान कृष्ण से प्रेम करते थे।
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥