|
|
|
श्लोक 10.59.35  |
भूयात् पतिरयं मह्यं धाता तदनुमोदताम् ।
इति सर्वा: पृथक् कृष्णे भावेन हृदयं दधु: ॥ ३५ ॥ |
|
शब्दार्थ |
भूयात्—बन सके; पति:—पति; अयम्—वह; मह्यम्—मेरा; धाता—विधाता; तत्—वह; अनुमोदताम्—स्वीकृति प्रदान करें; इति—इस प्रकार; सर्वा:—वे सभी; पृथक्—अलग-अलग; कृष्णे—कृष्ण में; भावेन—भाव से; हृदयम्—अपने हृदयों में; दधु:—रख लिया ।. |
|
अनुवाद |
|
हर राजकुमारी ने इस विचार से कि “विधाता इस पुरुष को मेरा पति बनने का वर दें” अपने हृदय को कृष्ण के विचार में लीन कर दिया। |
|
|
|
शेयर करें
 |