हिंदी में पढ़े और सुनें
भागवत पुराण  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 6: पूतना वध  »  श्लोक 39-40
 
 
श्लोक  10.6.39-40 
पयांसि यासामपिबत् पुत्रस्‍नेहस्‍नुतान्यलम् ।
भगवान् देवकीपुत्र: कैवल्याद्यखिलप्रद: ॥ ३९ ॥
तासामविरतं कृष्णे कुर्वतीनां सुतेक्षणम् ।
न पुन: कल्पते राजन् संसारोऽज्ञानसम्भव: ॥ ४० ॥
 
शब्दार्थ
पयांसि—दूध (शरीर से निकला); यासाम्—उन सबों का; अपिबत्—कृष्ण ने पिया; पुत्र-स्नेह-स्नुतानि—मातृ स्नेह के कारण, न कि बनावटी ढंग से, गोपियों के शरीर से निकला दूध; अलम्—पर्याप्त; भगवान्—भगवान्; देवकी-पुत्र:—देवकी के पुत्र रूप में प्रकट हुए; कैवल्य-आदि—यथा मुक्ति या ब्रह्म तेज में लीन होना; अखिल-प्रद:—ऐसे समस्त वरों के प्रदाता; तासाम्—उन सारी गोपियों का; अविरतम्—निरन्तर; कृष्णे—कृष्ण में; कुर्वतीनाम्—करते हुए; सुत-ईक्षणम्—माता द्वारा अपने शिशु को निहारना; —कभी नहीं; पुन:—फिर; कल्पते—कल्पना की जा सकती है; राजन्—हे राजा परीक्षित; संसार:—जन्म-मृत्यु का भौतिक बन्धन; अज्ञान-सम्भव:—सुखी बनने की कामना करने वाले मूर्ख व्यक्तियों द्वारा अनजाने में स्वीकृत किया गया ।.
 
अनुवाद
 
 भगवान् कृष्ण अनेक वरों के प्रदाता हैं जिनमें कैवल्य अर्थात् ब्रह्म तेज में तादात्म्य भी सम्मिलित है। उन भगवान् के लिए गोपियों ने सदैव मातृ-प्रेम का अनुभव किया और कृष्ण ने पूर्ण संतोष के साथ उनका स्तन-पान किया। अतएव अपने माता-पुत्र के सम्बन्ध के कारण विविध पारिवारिक कार्यों में संलग्न रहने पर भी किसी को यह नहीं सोचना चाहिए कि अपना शरीर त्यागने पर वे इस भौतिक जगत में लौट आईं।
 
तात्पर्य
 यहाँ कृष्णभावनामृत के लाभ का वर्णन हुआ है। कृष्णभावनामृत क्रमश: दिव्य स्तर पर विकसित होता है। मनुष्य परम पुरुष, परम स्वामी, परम मित्र, परम पुत्र या परम युगल प्रेमी के रूप में कृष्ण का चिन्तन कर सकता है। यदि कृष्ण से किसी का इनमें से किसी रूप में दिव्य सम्बन्ध होता है, तो समझिये कि उसके भौतिक जीवन का अन्त हो गया है। जैसाकि भगवद्गीता (४.९) में पुष्टि हुई है—त्यक्त्वा देहं पुनर्जन्म नैति मामेति—ऐसे भक्तों के लिए भगवद्धाम वापस जाना सुनिश्चित है। न पुन: कल्पते राजन् संसारोऽज्ञानसम्भव:। यह श्लोक इस बात की भी पुष्टि होती है कि जो भक्त कृष्ण से किसी विशेष सम्बन्ध में बँध कर निरन्तर ध्यान करते हैं, वे इस जगत में फिर नहीं लौटते। इस संसार में भी वही सम्बन्ध हैं। मनुष्य सोचता हैं ‘यह मेरा पुत्र है’, ‘यह मेरी पत्नी है’ ‘यह मेरा प्रेमी है’ या ‘यह मेरा मित्र है।’ किन्तु ये सम्बन्ध क्षणिक माया हैं। अज्ञानसम्भव:—ऐसी चेतना अज्ञान के कारण उत्पन्न होती है। किन्तु जब यही चेतना कृष्णभावनामृत में जागृत होती है, तो उसे पुन: आध्यात्मिक जीवन प्राप्त होता है और वह निश्चित रूप से भगवद्धाम वापस जाता है। यद्यपि गोपियाँ रोहिणी तथा माता यशोदा की सखियाँ थीं और कृष्ण को अपना स्तनपान कराती थीं परन्तु प्रत्यक्षत: कृष्ण की माताएँ न थीं। किन्तु उन्हें भगवद्धाम जाने का तथा कृष्ण की सासें, दासियाँ आदि बनने का वैसा ही अवसर प्राप्त हुआ जैसाकि रोहिणी तथा यशोदा को मिला। संसार शब्द अपने शरीर, घर, पति या पत्नी तथा बच्चों के प्रति अनुरक्ति का द्योतक है, किन्तु गोपियाँ तथा वृन्दावन के अन्य वासी अपने पति तथा घर के प्रति वैसा ही स्नेह तथा अनुरक्ति रखते हुए भी कृष्ण को अपने स्नेह का केन्द्र बनाये हुए थे। इसीलिए अगले जन्म में उन्हें गोलोक वृन्दावन जाने तथा कृष्ण के साथ रहकर शाश्वत दिव्य सुख-भोग की प्राप्ति निश्चित है। इस भौतिक जगत से छूट कर दिव्य पद को प्राप्त करने और भगवद्धाम जाने का सरलतम मार्ग भक्तिविनोद ठाकुर ने सुझाया है—कृष्णेर संसार कर छाडिऽअनाचार—सारे पाप कर्मों को त्याग कर कृष्ण के परिवार में रहना चाहिए। तभी मुक्ति निश्चित है।
 
शेयर करें
       
 
  All glories to Srila Prabhupada. All glories to  वैष्णव भक्त-वृंद
  Disclaimer: copyrights reserved to BBT India and BBT Intl.
   
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥