हिंदी में पढ़े और सुनें
भागवत पुराण  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 82: वृन्दावनवासियों से कृष्ण तथा बलराम की भेंट  »  श्लोक 10
 
 
श्लोक  10.82.10 
रामह्रदेषु विधिवत् पुनराप्लुत्य वृष्णय: ।
ददु: स्वन्नं द्विजाग्र्‍येभ्य: कृष्णे नो भक्तिरस्त्विति ॥ १० ॥
 
शब्दार्थ
राम—परशुराम के; ह्रदेषु—सरोवरों में; विधि-वत्—शास्त्रीय आदेशों के अनुसार; पुन:—फिर; आप्लुत्य—स्नान करके; वृष्णय:—वृष्णिजनों ने; ददु:—दान दिया; सु—सुन्दर; अन्नम्—भोजन; द्विज—ब्राह्मणों को; अछयेभ्य:—सर्वोत्तम; कृष्णे— कृष्ण के प्रति; न:—हमारी; भक्ति:—भक्ति; अस्तु—हो; इति—इस प्रकार ।.
 
अनुवाद
 
 तत्पश्चात् वृष्णिवंशियों ने शास्त्रीय आदेशों के अनुसार एक बार फिर परशुराम के सरोवरों में स्नान किया और उत्तम कोटि के ब्राह्मणों को अच्छा भोजन कराया। उन्होंने उस समय यही प्रार्थना की, “हमें भगवान् कृष्ण की भक्ति प्राप्त हो।”
 
तात्पर्य
 यह द्वितीय स्नान अगले दिन उनके उपवास की समाप्ति का द्योतक है।
 
शेयर करें
       
 
  All glories to Srila Prabhupada. All glories to  वैष्णव भक्त-वृंद
  Disclaimer: copyrights reserved to BBT India and BBT Intl.
   
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥