श्री भद्रा ने कहा : हे द्रौपदी, मेरे पिता ने स्वयं ही मेरे मामा के पुत्र कृष्ण को बुलाया था, जिन्हें मैं पहले ही अपना हृदय सौंप चुकी थी और उन्होंने मुझे उनकी दुलहन के रूप में अर्पित कर दिया। मेरे पिता ने मेरे साथ उन्हें एक अक्षौहिणी सैन्य रक्षक और मेरी सखियों की एक टोली भी दी थी। मेरी चरम सिद्धि यही होगी कि जब मैं अपने कर्म से बँध कर एक जन्म से दूसरे जन्म में भ्रमण करूँ, तो मुझे भगवान् कृष्ण के चरणकमलों को स्पर्श करने की अनुमति सदैव मिलती रहे।
तात्पर्य
आत्मन: शब्द के प्रयोग द्वारा रानी भद्रा न केवल अपनी बात कहती है, अपितु सारे जीवों की बात कहती है। आत्मा की सिद्धि (श्रेय आत्मन:) भगवान् कृष्ण की भक्ति है, जिससे इस लोक में तथा इससे परे भी मुक्ति मिलती है।
श्रील जीव गोस्वामी की टीका है कि यद्यपि सुसंस्कृत समाज में अपने गुरु या पति का नाम सबके सामने लेना असम्मानजनक माना जाता है, किन्तु कृष्ण का नाम अद्वितीय है—केवल कृष्ण-नाम का उच्चारण ही ईश्वर के प्रति सर्वाधिक आदर का सूचक है। श्वेताश्वतर उपनिषद (४.१९) में कहा गया है—यस्य नाम महद् यश:—भगवान् का पवित्र नाम परम यशस्वी है।
शेयर करें
All glories to Srila Prabhupada. All glories to वैष्णव भक्त-वृंद
Disclaimer: copyrights reserved to BBT India and BBT Intl.