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श्री यमुनाष्टकम्  |
श्रील रूप गोस्वामी |
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भ्रातुरन्तकस्य पत्तनेऽभिपत्तिहारिणी
प्रेक्षयातिपापिनोऽपि पापसिन्धुतारिणी।
नीरमाधुरीभिरप्यशेषचित्तबन्धिनी
मां पुनातु सर्वदारविन्दबन्धुनन्दिनी॥1॥ |
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हारिवारिधारयाभिमेण्डितोरुखाण्डवा
पुण्डरीकमण्डलोद्यदण्डजालिताण्डवा।
स्नानकामपामरोग्रपापसंपदान्धिनी
मां पुनातु सर्वदारविन्दबन्धुनन्दिनी॥2॥ |
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शीकराभिमृष्टजन्तु-दुर्विकमर्दिनी
नन्दनन्दनान्तरंगभक्तिपूरवर्धिनी।
तीरसंगमाभिलाषिमंगलानुबन्धिनी
मां पुनातु सर्वदारविन्दबन्धुनन्दिनी॥3॥ |
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द्वीपचक्रवालजुष्टसप्तसिन्धुभेदिनी
श्रीमुकुन्दनिर्मितोरुदिवयकेलिवेदिनी।
कान्तिकन्दलीभिरिन्द्रनीलवृन्दनिन्दिनी।
मां पुनातु सर्वदारविन्दबन्धुनन्दिनी॥4॥ |
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माथुरेण मण्डलेन चारुणाभिमण्डिता
प्रेमनद्धवैष्णवाध्ववर्धनाय पण्डिता।
ऊर्मिदोर्विलासपद्मनाभपादवन्दिनी
मां पुनातु सर्वदारविन्दबन्धुनन्दिनी॥5॥ |
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रम्यतीररंभमाणगोकदम्बभूषिता
दिवयगन्धभाक्कदम्बपुष्पराजिरूषिता।
नन्दसूनुभक्तसंघसंगमाभिनन्दिनी
मां पुनातु सर्वदारविन्दबन्धुनन्दिनी॥6॥ |
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फुल्लपक्षमल्लिकाक्षहंसलक्षकूजिता
भक्तिविद्धदेवसिद्धकिन्नरालिपूजिता।
तीरगन्धवाहगन्धजन्मबन्धरन्धिनी
मां पुनातु सर्वदारविन्दबन्धुनन्दिनी॥7॥ |
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चिद्विलासवारिपूरभूर्भुवः स्वरापिनी
कीर्तितापि दुर्मदोरुपापमर्मतापिनी।
बल्लवेन्द्रनन्दनाङ्गरागभङ्गगन्धिनी
मां पुनातु सर्वदारविन्दबन्धुनन्दिनी॥8॥ |
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तुष्टबुद्धिरष्टकेननिर्मलोर्मिचेष्टितां
त्वामनेन भानुपुत्रि! सर्ववेष्टिताम्।
यः स्तवीति वर्धयस्य सर्वपापमोचने
भक्तिपूरमस्य देवि! पुण्डरीकलोचने॥9॥ |
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शब्दार्थ |
(1) श्रीयमुना, सूर्यदेव की पुत्री, जो वयक्ति को अपने भाई यमराज के शहर में प्रवेश करने से बचाती है, जिसके दर्शन मात्र से अत्यन्त पापी वयक्ति भी पाप के सागर को पार करने के योग्य बन जाता है। और जिसके जल की मधुरता, प्रत्येक के हृदय को मंत्रमुग्ध कर देती है, वे श्रीयमुना सदा मुझे भी पवित्र करें। |
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(2) श्रीयमुना, सूर्यदेव की पुत्री, जो रमणीय जल की नदी से महान खाण्डव वन को अलंकृत करती हैं, जो कमल के पुष्पों और नृत्य करते पक्षियों से पूर्ण हैं, और जो, उनमें स्नान करने की आकांक्षा करने वालों के निकृष्ट पापों को निष्फल कर देती हैं, वे श्रीयमुना सदा मुझे पवित्र करें। |
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(3) श्रीयमुना, सूर्यदेव की पुत्री, जिनके जल की एक बुँद लोगों के पापपूर्ण कार्यो के फल को नष्ट कर देती है, जो श्रीनन्द के पुत्र, नंदनंदन के प्रति गुह्य शुद्ध भक्ति की विशाल बाढ़ उत्पन्न कर देती है, और जो उनके तट पर निवास करने की इच्छा करने वाले लोगों के लिए शुभ-मंगल लाती हैं, सदा मुझे पवित्र करें। |
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(4) श्रीयमुना, सूर्यदेव की पुत्री, जो सात समुद्रों और सात महाद्वीपों का विभाजन करती हैं, जो भगवान् मुकून्द की बहुत सी दिवय लीलाओं की साक्षी है, और जिनका वैभव, नील रत्नों की विशाल संख्या को भी महत्त्वहीन समझकर त्याग देता है, ऐसी श्रीयमुनाजी, सदा मुझे पवित्र कर दें। |
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(5) श्रीयमुना, सूर्यदेव की पुत्री, जो मथुरा के खूबसूरत जिले द्वारा अलंकृत है, जो निपुणता पूर्वक उनकी रक्षा करती है, जो प्रेममयी भक्ति के पथ का अनुसरण करते हैं, और जो लहरों के क्रीड़ाजनक इशारो द्वारा, जो कि उनकी भुजाएँ हैं और पद्मनाभ के चरणों में सादर प्रणाम अर्पित करती हैं, वे श्रीयमुना सदा मुझे पवित्र करें। |
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(6) श्रीयमुना, सूर्यदेव की पुत्री, जिनके मनमोहक तट कई गौओं द्वारा अलंकृत हैं, जो बहुत से भवय एवं सुगंधित कदम्ब के पुष्पों से पूर्ण हैं, और जो भगवान् कृष्ण के भक्तों का संग पाकर प्रसन्न होती है, वे श्रीयमुना, मुझे सदा पवित्र करें। |
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(7) श्रीयमुना, सूर्यदेव की पुत्री, जो हजारों हर्षपूर्ण मल्लिकाक्ष हंसों की चहकती बोली से परिपूर्ण हैं, जो वैष्णव जन, देव, सिद्ध एवं किन्नरों द्वारा पूजी जाती हैं, और उनके तटों पर विचरण करती सुगंधित मंद पवन (बयार) की हल्की सी महक, जन्म एवं मृत्यु के चक्र को रोक देती है, वे श्रीयमुना सदा ही मुझे पवित्र करें। |
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(8) श्रीयमुना, सूर्यदेव की पुत्री, जो भुर, भुवः और स्वर लोकों में बहती हुई प्रसिद्ध, भवय, आध्यात्मिक नदी है, जो महान पापों को भी जला कर नष्ट कर देती है, और जो भगवान् कृष्ण के दिवय शरीर के सुगंधित मरहम या लेप से महकती हैं, सदा ही मुझे पवित्र करें। |
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(9) हे कमल नयनी, हे सूर्यदेव की पुत्री, हे समस्त पापों से रक्षा करने वाली, कृपया उस वयक्ति को शुद्ध भक्ति द्वारा ओत प्रोत कर दीजिए, जो, प्रसन्न, प्रफुल्ल हृदय द्वारा इन आठ प्रार्थनाओं का पाठ करके आपकी महिमा का गुणगान करता है, जिनकी लहरें शुद्ध और वैभवशाली हैं, और जिनमें सदा देवता भी विद्यमान रहते हैं। |
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥ हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥ |
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