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श्री अद्वैताष्टकम्  |
श्रील सार्वभौम आचार्य |
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हुहँकार गर्जनादि-अहोरात्र सदगुणम्
हा कृष्ण-राधिकानाथ-प्रार्थनादि-भावनम्।
धूप-दिप-कस्तुरी च चंदनादि लेपनम्
सीतानाथाद्वैत-चरणारविन्द-भावनम्॥1॥ |
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गंगावारि मनोहारी तुलस्यादि मंजिरी
कृष्णज्ञान-सदाध्यान-प्रेमवारि झर्झरी।
कृपाब्द्धि करुणानाथ भविष्यति प्रार्थनम्
सीतानाथाद्वैत-चरणारविन्द-भावनम्॥2॥ |
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मुहुर्मुहः कृष्ण कृष्ण उच्चैः स्वरे गायतम्
अहोऽनाथ जगत्रातः मम दृष्टीगोचरम्।
द्विभुज करुणानाथ दीयतां सुदर्शनम्
सीतानाथाद्वैत-चरणारविन्द-भावनम्॥3॥ |
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श्रीअद्वैत-प्रार्थनार्थ जगन्नाथ-आलयम्
शचीमातुर्गभजात चैतन्यकरुणामयम्।
श्रीअद्वैत-संग-रंग-कीर्तन-विलासनम्
सीतानाथाद्वैत-चरणारविन्द-भावनम्॥4॥ |
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अद्वैत-चरणारविन्द-ज्ञान-ध्यान-भावनम्
सदाद्वैत-पादपद्म-रेणुराशि-धारणम्
देहि भक्तिं जगन्नथ रक्ष ममभाजनम्
सीतानाथाद्वैत-चरणारविन्द-भावनम्॥5॥ |
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सर्वदातः सीतानाथ-प्राणेश्वर सदगुणम्
जे जपन्सीितानाथ-पादपद्म केवलम्।
दीयतां करुणानाथ भक्तियोगः तत्क्षणम्
सीतानाथाद्वैत-चरणारविन्द-भावनम्॥6॥ |
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श्रीचैतन्य जयाद्वैत-नित्यानंद करुणामयम्
एक अंग त्रिधामूर्ति कैशोराधि सदावरम्।
जीवत्राण-भक्तिज्ञान-हुंकरादि-गर्जनम्
सीतानाथाद्वैत-चरणारविन्द-भावनम्॥7॥ |
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दीनहीन-निन्दकादि प्रेमभक्ति-दायकम्
सर्वदातः सीतानाथ शान्तिपुर-नायकम्।
रागरंग-संगदोष कर्मयोग-मोक्षणम्
सीतानाथाद्वैत-चरणारविन्द-भावनम्॥8॥ |
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शब्दार्थ |
(1) मैं सीता-पति, श्रीअद्वैत के चरणकमलों में ध्यान लगाता हूँ जिन्होंने गरजती आवाज में परम भगवान् से याचना की और दिन-रात उसे प्रार्थना की, “हे कृष्ण! हे राधि का-नाथ!” भगवान् को शालिग्राम शिला के रूप में, चंदन के लेप और सुगंधित पदार्थ के साथ, उन्होंने अगरबत्ती व एक दीये से भगवान् की आराधना की। |
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(2) उन्होंने गंगा जल में तुलसी दल व मंजरियाँ मिलाकर अर्पित कीं। प्रेम के अश्रु उनके नेत्रों से निरन्तर प्रवाहित होते हैं जब वे कृष्ण पर ध्यान लगाते हैं और उनकी महिमा का गुणगान करते हैं। वे परम भगवान् से प्रार्थना करते हैं, जो दया के सागर हैं, कि वे इस संसार में अवतरित हों। मैं सीता-पति श्रीअद्वैत के चरण कमलों पर ध्यान लगाता हूँ। |
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(3) बार-बार वे जोर-जोर से गाते हैं, “कृष्ण! कृष्ण!” उनसे याचना करते हैं, “हे नाथ! ब्रह्माण्ड का उद्वार करने वाले (जगत्राता)! हे कृपालु भगवान्! कृपा करके मुझे अपना सुगम द्विभुज रूप दिखाइये!” अतः मैं, सीता-पति, श्रीअद्वैत के चरण कमलों के चिंतन में लीन हूँ। |
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(4) श्रीअद्वैत की प्रार्थनाओं के कारण, दयालु श्रीचैतन्य शची माता एवं श्रीजगन्नाथ मिश्र के पुत्र के रूप में प्रकट हुए। इस प्रकार, श्रीअद्वैत और अन्य पार्षदों के संग, उन्होंने अपनी कीर्तन लीलायें प्रदर्शित कीं। मैं, सीता-पति, श्रीअद्वैत के चरणकमलों में ध्यान लगाता हूँ। |
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(5) मैं सीता-पति, श्रीअद्वैत के चरणकमलों में समाधिस्थ हूँ। ये चरण मेरे अध्ययन एवं ध्यान की, दिल में संजोए रखी वस्तु हैं। अतः मैं सदैव इन चरणों की रज अपने शीश पर रखता हूँ। हे जगन्नाथ! ब्रह्माण्ड के वामी, कृपया इस अयोग्य आत्मा की रक्षा कीजिए और उसे शुद्ध भक्ति प्राप्त करने की विधि के मार्ग में प्रविष्ट कराइये। |
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(6) मै, सीता-पति श्रीअद्वैताचार्य के चरणकमलों में प्रणाम करता हूँ। वे मेरे जीवन के स्वामी हैं। उनके आशीर्वाद से सबकुछ प्राप्त किया जा सकता है। यह अत्यन्त उदार स्वामी, उन लोगों को एक ही बार में भक्ति प्रदान करता है जो भी उनके चरणकमलों का चिंतन करता है। |
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(7) मैं, सीता-पति, श्रीअद्वैत के चरण कमलों में ध्यान करता हूँ, जिनकी महान यशप्रद पुकार द्वारा श्रीचैतन्य महाप्रभु और अत्यधिक दयालु, नित्यानंद प्रभु प्रकट हुए। यद्यपि वे सभी, विष्णु-तत्व के एक ही वर्ग में आते हैं, परन्तु वे, जीवन की सभी विभिन्न अवस्थाओं से गुजरते हुए तीन वयक्तियों के रूप में प्रकट हुए। समस्त जीवों का उद्धार करने के लिए, उन्होंने पवित्र भगवन्नाम जोर से उच्चारण करते हुए गाया कभी प्रेमानन्द भाव में वज्र की तरह दहाड़ते हुए, हँसते हुए या कभी राते हुए। इस प्रकार उन्होंने उन्हें भक्ति के विषय में दिवय ज्ञान दिया। |
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(8) वे अत्यन्त पतित, बिगड़े हुए भ्रष्ट, जिद्दी, दुराग्रही और अन्य, सभी को प्रेममयी भक्ति प्रदान करते है। वे, जो समस्त आशीर्वाद प्रदान करते हैं, शान्तिपुर के सरंक्षक श्रीअद्वैत वयक्ति को, भौतिक आसिक्तयों के बंधन से, बुरी संगति से, स्वार्थ हेतू किया गया कार्य, योग सिद्धि और मोक्ष या मुक्ति प्राप्त करने के प्रयास से मुक्त कर देते हैं। अतः मैं, सीता-पति, श्रीअद्वैत के चरण कमलों पर ध्यान लगाता हूँ। |
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(9) |
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥ हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥ |
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