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वैष्णव भजन  »  श्री शचीतनयाष्टकम्‌
 
 
श्रील सार्वभौम आचार्य       
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उज्ज्वल-वरण-गौरवर-देहं
विलसित-निरवधि-भावविदेहम्।
त्रिभुवन-पावन-कृपयाः लेशं
तं प्रणमामि च श्रीशचीतनयम्॥1॥
 
 
गद्‌गद-अन्तर-भावविकारं
दुर्जन-तर्जन-नाद-विशालम्।
भवभयभञ्जन-कारण-करुणं
तं प्रणमामि च श्रीशचीतनयम्॥2॥
 
 
अरुणाम्बरधर-चारुकपोलं
इन्दु-विनिन्दित-नखचय-रुचिरम्।
जल्पित-निजगुणनाम-विनोदं
तं प्रणमामि च श्रीशचीतनयम्॥3॥
 
 
विगलित-नयन-कमल-जलधारं
भूषण-नवरस-भावविकारम्।
गति-अतिमन्थर-नृत्यविलासं
तं प्रणमामि च श्रीशचीतनयम्॥4॥
 
 
च ञ्चल-चारु-चरण-गति-रुचिरं
मञ्जीर-रञ्जित-पदयुग-मधुरम्।
चन्द्र-विनिन्दित-शीतलवदनं
तं प्रणमामि च श्रीशचीतनयम्॥5॥
 
 
घृत-कटि-डोर-कमण्डलु-दण्डं
दिवय कलेवर-मुण्डित-मुण्डम्।
दुर्जन-कल्मष-खण्डन-दण्डं
तं प्रणमामि च श्रीशचीतनयम्॥6॥
 
 
भूषण-भूरज-अलका-वलितं
कम्पित-बिम्बाधरवर-रुचिरम्।
मलयज-विरचित-उज्जवल-तिलकं
तं प्रणमामि च श्रीशचीतनयम्॥7॥
 
 
निन्दित-अरुण-कमल-दल-नयनम्‌
आजानु-लम्बित-श्रीभुज-युगलम्।
कलेवर-कैशोर-नर्तक-वेशम्‌
तं प्रणमामि च श्रीशचीतनयम्॥8॥
 
 
(1) उनकी अत्यन्त उत्तम आध्यात्मिक देह चमकदार स्वर्ण वर्ण (सुनहरे रंग की है। ) उनके मन में श्रेष्ठ एवं परम दिवय प्रेमानन्द पूर्ण भाव निरन्तर बार-बार घुमते है। उनकी कृपा का एक अंश समस्त तीनां लाकों का उद्धार करने योग्य है- मैं माताशची के सुन्दर पुत्र गौर के चरणों में नतमस्तक होता हूँ।
 
 
(2) उनके स्वयं के अन्दर भावों के परिवर्तन होते रहते हैं जैसे आवाज का अवरुद्ध होना। उनकी आवाज की महान, प्रभावशाली ध्वनि दुष्ट वयक्तियों को कठोर दंड देती है। उनकी कृपा सांसारिक सत्ता द्वारा उत्पन्न समस्त भय को दूर कर देती है। श्रीशचिदेवी के उस पुत्र को मैं झुककर प्रणाम करता हूँ।
 
 
(3) वे सूर्योदय के सदृश रंग के वस्त्र पहनते है। उनके गाल बहुत मनमोहक एवं मनमुग्ध कर देने वाले है। उनके चमकदार नाखून, चन्द्रमा के सौंदर्य और चमक को भी मात देते हैं। वे अपने स्वयं के दिवय गुणों और पवित्र नाम की महिमा का गुणगान करने में हर्षित अनुभव करते हैं। - मैं माताशची के सुन्दर पुत्र गौर के चरणों में नतमस्तक होता हूँ।
 
 
(4) उनके कमल नयनों से प्रेम व आनन्दपूर्ण भाव के अश्रुओं की धारा प्रवाहित होती है। वे, नित्य नए प्रेममय रसों द्वारा उत्पन्न भाव-परिवर्तनों से अलंकृत हैं। उनकी नृत्य-लीलाएँ बहुत धीमी एवं मनोरम क्रियाएँ या गतिविधियाँ प्रदर्शित करती हैं। - मैं माताशची के सुन्दर पुत्र गौर के चरणों में नतमस्तक होता हूँ।
 
 
(5) उनके सुन्दर नृत्य करते पाँवों की कौशलपूर्ण क्रियाएँ (गतिविधियाँ) बहुत सुख एवं आनन्दायक हैं। उनके वे दोनों पाँव खनखनाती नुपुर की घुँघरुओं की ध्वनिसे और अधिक मधुर हो जाते हैं। उनका शांत एवं सौम्य चेहरा चन्द्रमा की शीतल किरणों को भी मात देता है। - मैं माताशची के सुन्दर पुत्र गौर के चरणों में नतमस्तक होता हूँ।
 
 
(6) वे कभी-कभी एक भिक्षुक का लंगोट पहन लेते हैं और एक सन्यासी भिक्षु का डंडा और कमंडल ले लेते हैं। उनकी दिवय देह तब मुंडे हुए सिर द्वारा शोभित व सम्मानित होती है उनके द्वारा दिया गया कठोर दंड, दुष्ट आत्माओं के पापों को तोड़ कर नष्ट कर देता है- मैं माताशची के सुन्दर पुत्र गौर के चरणों में नतमस्तक होता हूँ।
 
 
(7) एक गृहस्थ के रूप में, उनका चेहरा, पृथ्वी की रज (धूल) से सुसज्जित, काले बालों की लटों से घिरा है। उनके अति उत्तम होंठ, जो बिम्ब फल के समान लाल हैं, भाव में काँपने की क्रिया से और अधिक सुन्दर लगते हैं। उनके मस्तक पर वे चन्दन के लेप से बना चमकदार तिलक धारण करते हैं- मैं माताशची के सुन्दर पुत्र गौर के चरणों में नतमस्तक होता हूँ।
 
 
(8) उनके कमल नयनों का चमकता सौंदर्य, उदय होते सूर्य से भी बढ़कर है। उनकी दो सुन्दर भुजायें, उनके घुटनों तक फैली हैं। उनका दिवय शरीर, एक किशोर तरुण नाट्‌य नर्तक की शैली के रूप में, (वस्त्र एवं साज-सज्जा सहित) शोभायमान है- मैं माताशची के सुन्दर पुत्र गौर के चरणों में नतमस्तक होता हूँ।
 
 
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  All glories to Srila Prabhupada. All glories to  वैष्णव भक्त-वृंद
   
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