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वैष्णव भजन  »  श्री हरेर नामाष्टकम्‌ (श्री केवलाष्टकम्‌)
 
 
नीलकण्ठ गोस्वामी       
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मधुंर मधुरेभ्यो’पि
मङ्गलेभ्यो’पि मङ्गलम्।
पावनं पावनेभ्यो’पि
हरेर नामैव केवलम्॥1॥
 
 
आब्रह्मा-स्तंब-पर्यंतम्‌
सर्वमाया-मयं जगत्।
सत्यं सत्यं पुनः सत्यम्‌
हरेर नामैव केवलम्॥2॥
 
 
स गुरुः स पिता चापि
सा माता बांधवो’पि सः।
शिक्षयेच्चेतसदा स्मर्तुम्‌
हरेर नामैव केवलम्॥3॥
 
 
निःश्वासे नहि विश्वासः
कदा रुद्धो भविष्यति।
कीर्तनीय मतो बाल्याद्‌
हरेर नामैव केवलम्॥4॥
 
 
हरिः सदा वसेत्‌ तत्र
यत्र भागवता जनाः।
गायन्ति भक्तिभावेन
हरेर नामैव केवलम्॥5॥
 
 
ओ दुःखं महादुःखम्‌
दुःखाद्‌ दुःखतरं यतः।
काचायं विस्मृतं रत्न
हरेर नामैव केवलम्॥6॥
 
 
दीयतां दीयतां कर्णो
नीयतां नीयतां वाचः।
गीयतां गीयतां नित्यम्‌
हरेर नामैव केवलम्॥7॥
 
 
तृणकृत्य जगत्‌सर्वम्‌
राजते सकल परम्।
चिदानन्दमयं शुद्धम्‌
हरेर नामैव केवलम्॥8॥
 
 
(1) अन्य समस्त मधुर वस्तुओं से भी अधिक मधुर; अन्य समस्त शुभ वस्तुओं से भी और अधिक शुभ; समस्त पवित्र करने वाली वस्तुओं में अत्याधिक शुद्ध व पवित्र करने वाला- श्रीहरि का पवित्र नाम ही केवल, सबकुछ है।
 
 
(2) संपूर्ण ब्रह्माण्ड, उच्च एवं श्रेष्ठ ब्रह्माजी से लेकर निम्न घास के झुण्ड तक परम भगवान्‌ की माया, भौतिक शक्ति का उत्पादन है। केवल एक ही वस्तु है, वास्तविक है। एकमात्र श्रीहरि का पवित्र नाम ही सबकुछ है।
 
 
(3) वह वयक्ति एक सच्चा, समझने परखने की क्षमता रखने वाला है, या एक सच्चा पिता, एक सच्चीमाता, और एक सच्चा मित्र यदि वह वयक्ति को सदा ये स्मरण रखने की शिक्षा देता है कि, केवल श्रीहरि का नाम ही सबकुछ है।
 
 
(4) कुछ निश्चित नहीं है कि कब आखिरी सांस आ जाए और वयक्ति की सारी भौतिक योजनाओं पर आकस्मिक बाधा या रोक लगा दे इसलिए बुद्धिमत्ता इसी में है कि बचपन से ही सदा नाम जप या उच्चारण का अभ्यास करें। श्रीहरि का पवित्र नाम ही एकमात्र सबकुछ है।
 
 
(5) भगवान्‌ हरि शाश्वत्‌ रूप से उस स्थान पर वास करते हैं जहाँ सच्ची श्रेष्ठ, आध्यात्मिक रूप से उन्नत आत्माएँ, शुद्ध भक्ति के भाव में भगवन्नाम का गान करती हैं। एकमात्र श्रीहरि का पवित्र नाम ही सबकुछ है।
 
 
(6) अहो! कितने दुख की बात है, कितना बड़ा दुख है। संसार के अन्य किसी भी दुख से अधिक कष्टदायक इसको केवल एक काँच का टुकड़ा समझकर लोग इस रत्न को भूल गए हैं। केवल श्रीहरि का पवित्र नाम ही सबकुछ है।
 
 
(7) अपने कानों से इसे बार-बार श्रवण करना चाहिए; अपनी आवाज में इसका बार-बार उच्चारण करना चाहिए; इसे फिर से, नए सिरे से, निरतंर गाते रहना चाहिए-केवल श्रीहरि का पवित्र नाम ही सबकुछ है।
 
 
(8) इससे संपूर्ण ब्रह्माण्ड एक घास तिनके के समान महत्त्वहीन प्रतीत होता है यह वैभवपूर्ण तरीके से परम भगवान्‌ का समस्त लोगों पर शासन करवाता है यह शाश्वत्‌ रूप से चेतन दिवय प्रेमाभाव से पूर्ण है श्रेष्ठ रूप से शुद्ध है- केवल श्रीहरि का पवित्र नाम ही सबकुछ है।
 
 
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥ हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
 
 
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