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वैष्णव भजन  »  श्री नन्दनन्दनाष्टकम्‌
 
 
अज्ञातकृत       
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सुचारूवक्त्रमण्डलं सुकर्णरत्नकुण्डलम्।
सुचर्चिताङ्गचन्दनं नमामि नन्दनन्दनम्॥1॥
 
 
सुदीर्घ नेत्रपंकजं शिखिशिखण्डमूर्घजम्।
अनङ्गकोटिमोहनं नमामि नन्दनन्दनम्॥2॥
 
 
सुनासिकाग्रमौक्तिकं स्वच्छन्द दन्तपक्तिकम्।
नवाम्बुदाङ्गचिक्कणं नमामि नन्दनन्दनम्॥3॥
 
 
करेण वेणुरञ्जितं गतीकरीन्द्रगञ्जितम्‌
दुकूलपीत शोभनं नमामि नन्दनन्दनम्॥4॥
 
 
त्रिभङ्गदेहसुन्दरं नखद्युतिसुधाकरम्।
अमूल्य रत्नभुषणं नमामि नन्दनन्दनम्॥5॥
 
 
सुगन्धअङ्गसौरभमुरोविराजिकौस्तुभम्‌
स्फुरच्छृीवत्वलाञ्छनं नमामि नन्दनन्दनम्॥6॥
 
 
वृन्दावनसुनागरं विलासानुगवाससम्।
सुरेन्द्रगवंमोचनं नमामि नन्दनन्दनम्॥7॥
 
 
व्रजाङ्गनासुनायकं सदा सुखप्रदायकम्।
जगन्मनः प्रलोभनं नमामि नन्दनन्दनम्॥8॥
 
 
श्रीनन्दनन्दनाष्टकं पठेद्‌ य श्रद्धयान्वितः।
तरेभ्दवाब्धिं दुस्तरं लभेत्तदंघ्रियुग्मकम्॥9॥
 
 
(1) मैं उस नन्दनन्दन को प्रणाम करता हूँ, जिसका चेहरा (मुख) अत्यन्त प्रफुल्लित है, जिनकें सुन्दर कानों में रत्नजड़ित कुंडल लटकते हैं, और जिनका पूरा शरीर सुगन्धित चंदन द्वारा मण्डित (लेप किया हुआ) है।
 
 
(2) मैं उन नन्दनन्दन को प्रणाम करता हूँ, जिनके नेत्र, पूर्ण रूप से खिले हुए कमल पुष्प से भी अधिक सुन्दर हैं, जिनका शीश, मोर पंखो से सुवयवस्थित रूप में अलंकृत है, और जो लाखो-करोड़ों कामदेवों को भी मंत्रमुग्ध कर लेते हैं।
 
 
(3) मैं उस नन्दनन्दन को प्रणाम करता हूँ, जिनकी सुन्दर नाक में एक गज-मोती लटक रहा है, जिनके दाँत बहुत अधिक चमकीले हैं, जिनका शारीरिक वर्ण एक नव वर्षा के मेघ से भी अधिक सुन्दर व चमकीला कान्तिमय है।
 
 
(4) मैं उस नन्दनन्दन को प्रणाम करता हूँ, जिनके हस्त कमल बाँसुरी या मुरली धारण किए हुए हैं, जिनकी धीमी चाल, एक निरुत्साहित हाथी की चाल को भी परास्त कर देती हैं, और जिनके साँवले अंग, एक पीली ओढ़नी द्वारा सौदंर्य से पूर्ण हैं।
 
 
(5) मैं उस नन्दनन्दन को प्रणाम करता हूँ, जिनकी त्रिभंग मुद्रा उत्कृष्ट रूप से सुरुचिपूर्ण व ललितमय है, जिनके पैरों के नाखूनों की कान्ति, चन्द्रमा को भी लज्जित कर देती है, और जो बहूमूल्य रत्न एवं आभूषण पहनते हैं।
 
 
(6) मैं उस नन्दनन्दन को प्रणाम करता हूँ, जिनके शरीर से एक विशेष सुंदर सुगन्ध निःस्रवित (धीरे-धीरे बाहर निकलती) होती है और जिनका विशाल वक्षस्थल, कौस्तुभ मणि एवं श्रीवत्स के चिह्न से अलंकृत है।
 
 
(7) मैं उस नन्दनन्दन को प्रणाम करता हूँ, वृन्दावन के कुशल प्रेमी जो त्रुटिहीन लीलाएँ करते हैं और जो ऐसे वस्त्रों में हैं जो उन लीलाओं के लिए एकदम अनुकूल हैं, और जिन्होंने इन्द्र के अभिमान को चूर-चूर करके नष्ट कर दिया था।
 
 
(8) मैं उस नन्दनन्दन को प्रणाम करता हूँ, व्रज की गोपियों के प्रेमी के रूप में उन्हें जीवन भर स्थायी रूप से प्रसन्न करते हैं और जो समस्त जीवों के मन को मंत्रमुग्ध कर देते हैं।
 
 
(9) जो भी इस श्रीनन्दनन्दनाष्टकम्‌ का नियमित रूप से पाठ करता है वह भौतिक अस्तित्व के कठिनाइयों एवं बाधाओं से पूर्ण, जीता न जा सकने वाला, प्रतीत होते सागर को भी सरलता से पार कर लेता है और श्रीकृष्ण के चरण कमलों में नित्यवास प्राप्त करता है।
 
 
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥ हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
 
 
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  All glories to Srila Prabhupada. All glories to  वैष्णव भक्त-वृंद
   
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥