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    "यह भागवत पुराण सूर्य के समान प्रकाशमान है और इसका उदय धर्म, ज्ञान इत्यादि के साथ भगवान् श्रीकृष्ण द्वारा निज धाम को प्रयाण करने के पश्चात् ही हुआ है।" - श्रीमद्भागवत १.३.४३
 
 
संदर्भ एवं अर्थ
SB 1.1.10  -  कलियुग में
SB 1.3.24  -  कलियुग में
SB 1.3.43  -  कलियुग में
SB 5.6.9  -  इस कलियुग में
SB 5.6.10  -  इस कलियुग में
SB 5.15.1  -  इस कलियुग में
SB 7.9.38  -  कलियुग में
SB 9.12.16  -  कलियुग के अन्त में
SB 9.22.18-19  -  कलियुग में
SB 9.22.44-45  -  इस कलियुग में
SB 9.24.61  -  कलियुग में
SB 10.20.23  -  कलियुग में
SB 11.4.22  -  कलियुग में
SB 11.5.31  -  कलियुग में
SB 11.5.38-40  -  कलियुग में
SB 11.6.24  -  कलियुग में
SB 11.7.5  -  इस कलि
SB 12.1.6-8  -  इस कलियुग में
SB 12.1.11  -  इस कलियुग में
SB 12.1.14  -  कलियुग में
SB 12.2.2  -  कलियुग में
SB 12.2.11  -  कलियुग में
SB 12.2.12-16  -  कलियुग में
SB 12.3.16  -  कलियुग में रहते हुए
SB 12.3.24  -  कलियुग में
SB 12.3.37  -  कलियुग में
SB 12.3.39-40  -  कलियुग में
SB 12.3.41  -  कलियुग में
SB 12.3.43  -  कलियुग में
SB 12.3.44  -  कलियुग में
SB 12.3.52  -  कलियुग में
SB 12.12.44  -  वर्तमान कलियुग में
 
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥ हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
 
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  All glories to Srila Prabhupada. All glories to  वैष्णव भक्त-वृंद
 

 
>  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥